नहीं, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत एक आरटीआई आवेदन में पूछे जा सकने वाले प्रश्नों की संख्या पर कोई विशिष्ट कानूनी प्रतिबंध नहीं है। हालांकि, विभागीय नियमों या पिछले निर्णयों के आधार पर लोक सूचना अधिकारियों (पीआईओ) द्वारा अक्सर कुछ व्यावहारिक और प्रक्रियात्मक सीमाएं लागू की जाती हैं। मुख्य बिंदु: आरटीआई अधिनियम, 2005 स्वयं प्रश्नों की संख्या को सीमित नहीं करता है। लेकिन कई सार्वजनिक प्राधिकरण अनौपचारिक रूप से आरटीआई को सीमित करते हैं: एक विषय वस्तु, प्रश्नों की उचित संख्या (बोझ से बचने के लिए), लगभग 150-500 शब्द या एक पृष्ठ। प्रासंगिक निर्णय और प्रथाएँ: केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने माना है कि: > "भ्रम से बचने और त्वरित प्रतिक्रिया की सुविधा के लिए एक आरटीआई आवेदन सामान्यतः एक विषय वस्तु तक ही सीमित होना चाहिए।" > (सीआईसी निर्णय संख्या सीआईसी/एसएम/ए/2011/001578/एसजी) सुभाष चंद्र अग्रवाल बनाम सीपीआईओ में, सीआईसी ने स्पष्ट किया कि एक ही विषय पर कई प्रश्न स्वीकार्य हैं। डीओपीटी और आयकर जैसे विभाग अक्सर अस्पष्ट या बहुत अधिक असंबंधित प्रश्नों के साथ आरटीआई दाखिल करने के खिलाफ सलाह देते हैं। क्या बहुत अधिक प्रश्नों के लिए आरटीआई को अस्वीकार किया जा सकता है? कोई स्वचालित अस्वीकृति नहीं है, लेकिन: यदि प्रश्न बहुत अधिक विशाल, अस्पष्ट, या असंबंधित हैं, तो पीआईओ निम्नलिखित के तहत अस्वीकार कर सकता है: धारा 7(9): यदि यह संसाधनों को असंगत रूप से विचलित करता है, धारा 8 या 9: यदि छूट लागू होती है। सर्वोत्तम अभ्यास: आरटीआई को एक विषय (जैसे, एक मामला, एक योजना, एक फ़ाइल) पर केंद्रित रखें। आप उस विषय के भीतर कई संबंधित प्रश्न (आदर्श रूप से 5-10 तक) पूछ सकते हैं। यदि प्रश्न बहुत अधिक या विविध हैं, तो अलग-अलग आरटीआई दायर करें। निष्कर्ष: एक आरटीआई में प्रश्नों की संख्या पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है, लेकिन देरी या अस्वीकृति से बचने के लिए, अपने प्रश्नों को एक विषय तक सीमित रखना और आवेदन को ओवरलोड करने से बचना सबसे अच्छा है।
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