भारत में, आमतौर पर किसी भी संस्थान में मूल प्रमाण पत्र को स्थायी रूप से जमा करना आवश्यक नहीं है, जब तक कि विशिष्ट नियमों द्वारा स्पष्ट रूप से अनिवार्य न किया गया हो। हालाँकि, संदर्भ के आधार पर अपवाद हैं: शैक्षणिक संस्थानों (कॉलेज, विश्वविद्यालय) के लिए: प्रवेश के समय सत्यापन के लिए मूल दस्तावेज़ दिखाए जा सकते हैं, लेकिन संस्थानों को उन्हें अपने पास नहीं रखना चाहिए। यूजीसी दिशा-निर्देशों (2018) के अनुसार: संस्थान प्रवेश के बाद छात्रों के मूल प्रमाण पत्र नहीं रख सकते हैं। केवल स्व-सत्यापित प्रतियाँ ही जमा की जानी चाहिए। सत्यापन के लिए मूल प्रमाण पत्र अस्थायी रूप से दिखाए जा सकते हैं और उन्हें तुरंत वापस करना होगा। नियोक्ता (निजी या सरकारी) के लिए: नियोक्ता जॉइनिंग के समय सत्यापन के लिए मूल प्रमाण पत्र मांग सकते हैं। वे मूल दस्तावेज़ों को स्थायी रूप से अपने पास नहीं रख सकते हैं। बिना सहमति के मूल प्रमाणपत्र रखना अनुचित श्रम व्यवहार या रोजगार अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। अपवाद: कुछ ऋण या बांड-आधारित अनुबंधों (जैसे, शैक्षिक ऋण या सेवा बांड के साथ छात्रवृत्ति) में, संस्थान या प्रायोजक शर्त के रूप में मूल प्रमाणपत्र अपने पास रख सकते हैं - लेकिन यह उचित दस्तावेज और सहमति के साथ किया जाना चाहिए। कानूनी उपाय: यदि कोई संस्थान आपके मूल प्रमाणपत्रों को जबरन अपने पास रखता है, तो आप पुलिस में शिकायत दर्ज कर सकते हैं, उपभोक्ता फोरम से संपर्क कर सकते हैं, या शिक्षा नियामक (जैसे यूजीसी या एआईसीटीई) को लिख सकते हैं।
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