घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 मुख्य रूप से एक सिविल कानून है, न कि आपराधिक कानून। स्पष्टीकरण: यह अधिनियम महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए सिविल उपाय प्रदान करता है, जैसे सुरक्षा आदेश, निवास आदेश, भरण-पोषण, बच्चों की हिरासत, और मुआवजा। अधिनियम के तहत कार्यवाही सिविल प्रकृति की होती है और आमतौर पर सिविल अदालतों या संरक्षण अधिकारियों द्वारा संभाली जाती है। अधिनियम के तहत अधिकांश मामलों में कारावास या आपराधिक दंड के लिए कोई दंडात्मक प्रावधान नहीं हैं। हालाँकि: घरेलू हिंसा के कुछ कृत्य (जैसे शारीरिक हमला) भी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आपराधिक अपराध हो सकते हैं, जैसे हमला, क्रूरता, या उकसाना; उन पर अलग से मुकदमा चलाया जा सकता है। अधिनियम न्यायालय को आवश्यक होने पर कुछ मामलों को पुलिस कार्रवाई या आपराधिक कार्यवाही के लिए संदर्भित करने का अधिकार देता है। सारांश: घरेलू हिंसा अधिनियम एक नागरिक कानून है जो पीड़ितों को सुरक्षा और राहत प्रदान करने पर केंद्रित है, जबकि घरेलू हिंसा से उत्पन्न आपराधिक कार्रवाइयों को आईपीसी या अन्य आपराधिक कानूनों के तहत निपटाया जाता है।
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